सुनो ना,
उसके जाने का ग़म तो आज भी है पर इस बात का ज़िक्र मैं किसी से नहीं करता,
क्या फ़ायदा जब उसे ही फर्क नहीं पड़ता ।
सुनो ना,
उसकी याद तो मुझे आज भी आती है और हर पल हर लम्हा मेरे दिल को सताती है,
पर क्या फ़ायदा इन यादों का भी जो सिर्फ मुझे ही उसकी आती हैं ।
सुनो ना,
रातों को नींद तो आज भी आती है पर बिना पूछे वो भी मेरे ख्वाबों में चली आती है,
पर क्या फ़ायदा इन ख्वाबों का जिसमें वो मुझे मिल ही नहीं पाती ।
सुनो ना
उसको देखने का मन तो आज भी बहुत करता है, जी करता है वहीं पहले की तरह उसके सामने बैठ कर उसे निहारूं,
पर क्या फ़ायदा जब वो तो मेरा साया भी अपने आस पास नहीं चाहती है।
सुनो ना,
मुलाकातें मैं आज भी बहुत लोगों से करता हूं कभी अकेले तो कभी उनके साथ चलता हूं,
पर क्या फ़ायदा साथ चलने का, उनसे भी तो तेरी ही बातें करता हूं ।
सुनो ना,
मैं दुनिया से आज भी तेरे लिए लड़ जाता हूं , कहीं ना कहीं तेरी परछाई को देखकर ही खुश हो जाता हूं,
पर क्या फ़ायदा इन खुशियों का भी जो मैं तेरे साथ नहीं बाट पाता हूं ।
सुनो ना,
इस दिल में तेरे लिए जगह आज भी खाली है, तू ही मेरे लिए सब कुछ थी ये बात मैंने मानी है,
पर क्या फ़ायदा जब तू इस बात से अनजान नहीं फिर भी मुझसे दूर है।
सुनो ना,
आज भी सुबह उठते ही उसका नाम दिमाग में आता है, रात को सोने से पहले उस से बात करने को दिल चाहता है,
पर क्या फ़ायदा जब इन अरमानों को दिल में रखने का जब मैं जानता हूं वो जा चुकी है।
दिलों दिमाग से उसे और उसकी यादों को निकालने की ठानी है, उसे भुला देने की कसम भी तो खाई है,
लेकिन क्या फ़ायदा, आज फिर अकेले में और सबके साथ बैठ कर भी वही ज़हन में आई है ।
अब कहां उसे मेरी याद आती होगी,
मेरी तरह एक दूसरे के साथ होने की कमी सताती होगी,
अब कहां वो मुझसे मिलना चाहती होगी ।
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अब तो जितना दिया खुदा ने उतना ही मुकम्मल लगता है,
उसके साथ बिताया दिन मुझे जिंदगी लगता है।
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शायद अब यादें ही उसके साथ रहने का एक ज़रिया है,
उसे दूर रह कर भी ना देख सकूं, इतना दूर उसने कर दिया है।
सुनो ना,
उस से पूछना ना, क्या कभी मेरा खयाल उसके मन में भी आया, क्या मेरी ही तरह उसने कभी मुझे चहाया ?
- देवेश तिवारी