Sunday, 13 June 2021

मुश्किलें बहुत हैं।


बहुत मुश्किल है,
उन खयालों को कैद करना जो कभी जाने पहचाने थे, 
उन गलियों का सूनापन अब मन को खाता है,
जो हमारी बातों, ठहाकों, शोरगुल को खुद में समेटे हैं,
जहां लोग चबूतरे पर साथ होते थे,
जहां बच्चे तरह-तरह के खेल खेला करते थे, 
वह लहरों के कारण घर में आज सहमे-सहमे है,
दिमाग पर ज़ोर डालना मुश्किल है 
और 
उसको शून्य कर देना बहुत मुश्किल है।
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बहुत मुश्किल है, ये मान लेना कि
दो साल आंख झपकते ही निकल गए।
कितने मौके थे, जो सफ़लता में बदले जा सकते थे।
सफ़लता सुख देती है,
असफ़लता सीख देती है,
लेकिन बिना किसी विकल्प के हम कैसे सोच लें की हम सफल हो सकते थे या असफल हो गए हैं?
हम दो साल किनारे पर खड़े रहे,
क्योंकि नदी पार करने को न कोई नाव थी न कोई ब्रिज।
ऐसा लगता है सब होकर भी कुछ नहीं हुआ।
हजारों घर उजड़ गए, 
मां ने बच्चे को खोया, 
बच्चे ने मां को खोया, 
पिता को खोने के बाद घर पर छत न रही,
रह गया तो अपनों को आखरी बार देख पाने का ग़म, 
दिल में बहुत गहराई है,
किसी को भूल जाना मुश्किल है 
और 
उनकी यादों के साथ जीना 
बहुत मुश्किल है।
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बहुत मुश्किल है आगे सुखद जीवन की कल्पना करना,
भूतकाल में हुई घटनाएं,
वर्तमान को खोखला कर रही हैं,
भविष्य में सूनापन है
चारों तरफ कोहरा छाया है 
इस कोहरे में जीवन रूपी 
गाड़ी को चलाना मुश्किल है 
और 
जीवन का स्थाई रूप से आगे बढ़ाना
बहुत मुश्किल है।
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-यश शक्तावत

2 comments:

  1. Jab bhi main yash ki koi kavita padhta hu to mujhe Sirf esa nhi Lagta ke main padh rha hu esa lagta hai maano jee rha hu... Ek ek shabdd aankho ke samne ghat rha hai...

    Jitti tareef kari jaye utti kam hai... Bohut behatareen... 🙌💯❤️

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