भारत देश की जीवन शैली अन्य देशों से अलग है। यहां के लोग अधिक भावनात्मक होते हैं। इतना ही नहीं, भारत ने ही विश्व को जीना सिखाया है। विदेश के लोग जहां भ्रम में पड़कर सिर्फ खाना-पीना, सोना ही जीवन समझते थे, तब भारत के लोगों ने उन्हें बताया कि त्याग ही जीवन का आधार है। भारतीय लोगों का मानना है कि त्याग से ही खुशी मिलती है, त्याग से ही जीवन में बड़े पद, ऊंची उपलब्धियां हासिल होती हैं। इतिहास उठा कर देखा जाए तो भारत में अनेक महान लोग थे जिन्हें हम आज भी याद करते हैं क्योंकि उनके त्याग ने उनका नाम अमर कर दिया।
जीवन को हमारे ऋषियों ने चार आश्रमों में बांटा है, ऋषि कहते हैं कि 'जीवेम शरदः शतम्' अर्थात 'मनुष्य 100 वर्ष तक जिए।' पहला आश्रम ब्रम्हचर्य का आश्रम है अर्थात इंद्रियों को संयम में रखकर विद्या ग्रहण करने का आश्रम। दूसरा आश्रम है, गृहस्थ आश्रम - जिसमें हम विवाह कर के जीवन के एक दूसरे अंग को समझते हैं और अपने बच्चों को भी अध्यात्म और धर्म की महिमा सिखाते और बताते हैं। फिर आता है, वानप्रस्थ आश्रम, यह हमें बताता है कि अब थोड़ा सांसारिक दृष्टि से हट के आध्यात्मिक दृष्टि की ओर कदम बढ़ाया जाए। अंत में आता है सन्यास आश्रम, जो बताता है कि संसार को त्याग कर अर्थात अपनी जगह पर रह कर ही उन सब से अलग रहना, यह समझना थोड़ा मुश्किल है कि कोई व्यक्ति संसार में रहकर भी संसार से अलग कैसे हो सकता है। यह अद्भुत विद्या भारत में मिलती है और जिसके कारण यह भारत के लोगों को अलग बनाती है।
आज के नव युग में हम सभी बाहरी दुनिया से इतने जुड़ गए हैं कि हम अपनी ही खोज नहीं करते। हमारा नाम हमारे माता-पिता ने रख दिया, लेकिन क्या वास्तव में आप वह नाम हैं, कौन यह जानने का प्रयास करता है? यही कारण है कि हम छोटी सी परेशानी आने पर घबरा जाते हैं। हमारे अंदर अनंत शक्तियां हैं।
आज मनुष्य चंद्रमा पर पहुंच गया है जो उसने कभी सोचा नहीं था। आप देख सकते हैं कि विचारों में कितनी शक्ति है। एक विचार कितना बदलाव ला सकता है। इस जीवन को जानने के लिए हमें जानना पड़ेगा कि हम क्या हैं? क्या मनुष्य का उद्देश्य केवल खाना पीना और सोना ही हो सकता है? क्या पशुओं और मनुष्यों में कोई फर्क नहीं है? मनुष्य सिर्फ और सिर्फ खाने पीने और सोने के लिए इस धरती पर आया है?
नहीं, मनुष्य का उद्देश्य कुछ बड़ा है। अपनी खोज हम सबको करनी है, यही जीवन है, जीवन एक खोज है।
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मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए कि वह त्याग करे, लालच का, बुरी आदतों का, नशे का, झूठ का, ग़लत काम का, भोग का, स्वार्थ का बुरी इच्छाओं का और कोशिश करें कि वह विषम से विषम परिस्थिति में भी विनम्र रहे और विवेक शून्य ना हो। वह पुरुषार्थ करके अपने मन को स्थिर करके आगे बढ़े और साथ ही साथ समाज को भी नीति की राह पर ले चले. ऐसे वह अपने साथ-साथ समाज का भी उत्थान करेगा।
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'महाजनो येन गतः स पन्थाः' अर्थात उस राह पर चले जिस पर महान पुरुष चले हैं
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- दिवाकर देव
It is the need of an hour, especially for your generation which is struggling with patience and humanity. Hope many eyes grasp the essence of this simple yet powerful message.
ReplyDeleteGreat work
ReplyDeleteKeep going ☺️
Such an great piece of writing 🙌
ReplyDeleteKeep up the good work!!
nice try
ReplyDeleteGreat work
ReplyDeleteGreattt 😍
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